Wednesday, April 11, 2012

एंटरटेनमेंट… एंटरटेनमेंट…. एंटरटेनमेंट




"बेटा, अंकल आंटी को ज़रा वो poem   तो सुनाना जो टीचर ने आज क्लास में सिखाई है"

 अपने ज़िंदगी के पड़ाव में ये पल हम सब ने कभी ना कभी भुगते है जहाँ पर हमे एक ज़बरदस्ती का मंच दे दिया जाता था और बिन बुलाए दर्शक एकटक हमारी ओर देखते रहते थे।  माथे की  गंगोत्री जहाँ से पसीने की गंगा कानों के पीछे से बहते हुए अपना ही रास्ता पकड़ लेती थी, ज़बान और आवाज़ का अचानक से आँकड़ा छत्तीस का हो जाता था, दिल की धड़कनें राजधानी को मात  देने का लक्ष्य  लेकर निकल पड़ती और ज़हन में बस एक ही ख़याल आता की इन नन्हे कंधों  पर माता पिता ने दुनिया भर का बोझ डाल दिया । दिमाग़ में एकटक यही ख़याल रहता की  हम कोई ऍफ़ एम्   रेडियो के या टीवी के चॅनेल थोड़े ही है की जब मूड आया, मनोरंजन के लिए बुला लिया। हम तो वो  उम्दा कलाकार है जो अपने दर्शक भी खुद तय करते है और मंच भी।

बच्चों का जीवन कुछ चीज़ों में ही सिमटा रहता है। बचपन में जब पापा स्कूटर चलाए तो सामने खड़े होना, स्कूल टालने के लिए पेट दर्द का प्लान execute कर सफलता का परचम लहराना, शाम को डेढ़ दो घंटे क्रिकेट खेलना, सन्डे सुबह  ducktales , talespin  और फ्राइडे को alladin  देखना, किचन में डब्बों में छिपे लड्डूओं को treasure  हंट की तरह ढूंढ  निक।लना,  इन सब में एंटरटेनमेंट का फुल quota  पूरा हो जाता था । वैसे भी बच्चों की तरफ सब का ध्यान बिन बुलाए आ ही जाता है । रिश्तेदारों के घर जाने पर सब के लिए एंटरटेनमेंट का source  बच्चे ही बन जाते-  दादा दादी/नाना नानी की कहानियों को श्रोता मिल जाते, बाकी लोगों को गाल खीचने के रस का आनंद मिल जाता।

पर उमर जैसे जैसे बढ़ती है, हम में से कई मुख्य पात्र से हटकर,audience  की कुर्सी से चिपक कर बैठना ज़्यादा पसंद करने लगते है। इस परिस्थिति की विडम्बना यही है की लोगों का ध्यान खींचने की इच्छा सभी में है, पर जब सब का ध्यान हुमारी तरफ आ जाए, तो उसका करे क्या ये नही पता। फिर वापस पसीना अपनी यात्रा पे निकल पड़ता है।   मनोरंजन भी भगवान की तरह होता है, वो  ढूँदने से नही मिलता. वो तो हमारे भीतर और हमारे  आस पास ही समाया हुआ है, बस पारखी नज़र चाहिए मनोरंजन को देखकर पहचानने और समझने की। इतनी मगजमारी में न पड़ने की इच्छा की वजह से ही दर्शक की कुर्सी ज्यादा मनमोहक लगने लगती है या फिर भीड़ के अन्दर गुम होकर अलग से न दिखने की चतुर हरकत । 



आप कभी आदमियों का एक जमावड़ा देखे तो आप पाएँगे की उनके लिए मनोरंजन का source  कई पीढ़ियों से वही 4-5 चीज़ें है: भारत के प्रधानमंत्री और क्रिकेट टीम के कॅप्टन के फ़ैसलों की निंदा करना, अपने बॉस और बीवियों पर  लतीफे सुनाना  और अगली पीढ़ी की समझदारी पर सवाल उठाना । महफ़िल भले ही ऑफीस के बाद ड्रिंक्स की हो, बच्चों की बर्थडे  पार्टी,किसी रिश्तेदार की शादी या फिर कोई शोक सभा.. इन विषयों पर तो पंचायत बैठना निश्चित ही है ।

औरतों की परिचर्चा भी कुछ कम दिलचस्प नही होती है। उनके पास भी सुनने सुनाने के लिए काफ़ी कुछ रहता है। किस तरह उनके मियाँ की नौकरी अमरीका के प्रेसीडेंट से कुछ कम important  नही, किस तरह उनके बच्चों  के क्लास टेस्ट में आए दस  में से साढ़े सात  नंबर कठोर  संकल्प और परिश्रम का फल रहे , किस तरह सब्ज़ी वाला अपनी लाख कोशिशों के बावजूद दो रुपये extra  ऐंठने में उनसे चूक गया, किस तरह धीमी आँच में पकाकर और तेज पत्ता डालकर सब्जी  को अदभुत स्वाद दे दिया .. ये सारे विषय अपनी जगह हर परिचर्चा में किसी ना किसी तरह ढूंढ  ही लेते है।


मनोरंजन के अतरंगी पहलू नज़र आते है जब कोई मदिरापान  कर अपने ही रंग में आ जाता  है। आपने कई बंधुओं को drinking  session  के बाद कन्फेशन रूम में आते देखा होगा ।लड़खड़ाते ही सही पर कुछ वाक्य जैसे की "यार तू मेरा भाई है", "अपन मिलके दुनिया की बैंड बजा देंगे" या फिर "यार वो  लड़की ना जाने अपने आप को समझती क्या है। जितना भाव मैं देता हूँ, उतना भाव तो उसका आईना भी उसे नही देता होगा" अक्सर सुने जाते है । इन महफ़िलों में अगर कोई विरला बिना पिए रह गया तो भले ही  ही उसे इन सब दीवानों को संभालने का काम करना पड़ता है पर  ये सब बातें सुन उसकी शाम  एंटरटेनिंग हो जाती है।

Cinema हो या संगीत, TV हो या इंटरनेट पर सोशियल नेटवर्किंग साइट्स, मनोरंजन की दरकार सभी को किसी न किसी  दरवाज़े पर छोड़ ही जाती है। पर मनोरंजन की इस दुनिया में एक common सूत्र  होता है अपने अहम को संतुष्ट करना जिसे अँग्रेज़ी में ego  gratification  कहते है। बच्चों से पब्लिक में poem  बुलवाना हो या उन्हे ज़ी टीवी पर लिट्ल चॅंप बनवाना हो, अपने बॉस पर व्यंगय कसना हो या शादी में खड़े होकर दूल्हा दुल्हन को रेटिंग देना हो, तुलसी मिहिर के जीवन का हिस्सा बनना हो या फिर एमोशनल अत्याचार में बनते  बिखरते रिश्तों पे टिपण्णी  देना, इन सभी में हर बंधु के दिमाग़ में एक सोच common है  कि मैं इस मनोरंजन का दर्शक बनू पर  मुझे पात्र ना बनाया जाए। मैं सब पर  हंसू किंतु मुझ पे हँसा  ना जाए। मैं सबकी बेरोक टोक बात करू, पर मेरे पीठ पीछे  मेरी बात ना की जाए ( तारीफ़ हो तो किसी को कोई रोक टोक नही.. पीठ पीछे और पेट के आगे  हर जगह कीजिए)। गवर्नमेंट, क्रिकेट टीम, सिनेमा bashing और दूसरों के जीवन में मैं झांकु, पर मेरे जीवन के राज़ कोई ना जान पाए। एमोशनल अत्याचार है तो काफ़ी मनोरंजक, बस ये लायल्टी टेस्ट मुझ पे न  कराया जाए।


वैसे पुरानी यादों का और मनोरंजन का भी काफ़ी गहरा संबंध होता है। फोटोस हमे  बीतें लम्हों में टाइम मशीन की तरह ले जाते है। अमूमन कई बार देखा गया है की शादी हो या बर्थडे, कुछ  दिनों बाद तक तो जब भी घर पे कोई आए, उनके नसीब में वो  वीडियो देखना तो निश्चित ही है। कई बार ऐसा होता है की दूल्हा दुल्हन खुद तो वीडियो नही देखते पर उनके मम्मी पापा शादी का पूरा कारवाँ बार बार अपने हर मेहमान के लिए प्ले करते है।उनके लिए भले ही ये गर्व से भरा moment , खर्चे की एक एक डीटेल बताने का मौका और पूरी शादी में जुगाड़ और intelligence  का जो ताल मेल बैठाया है उसकी कहानी बार बार दोहराने का समय हो  पर लोग ये नही समझ पाते की मेहमानों का interest पूरे एल्बम  या वीडियो में सिर्फ़ दो तीन  जगहों पे रहता है:   या तो जब पकवान दिखाए जाए या फिर cameraman  ने उनपे focus  किया हो। बाकी पूरा टाइम तो वो मेहमान किसी  तरह बच निकालने की फिराक़ में होता है।

जैसे की पहले मैने कहा था, मनोरंजन तो खुदा की तरह है -हर जगह मिल सकता है,  बस नज़र चाहिए और इस पर बातचीत भी घंटों तक की जा सकती है ।आप तो बस अपने दिल का रिमोट उठाइए, उसकी गिटार का वॉल्यूम बढ़ाइए और एंटरटेनमेंट में मदमस्त हो जाइए। आखिर मनोरंजन के वो कुछ पल ही तो किसी तरह सूत्रधार बने सब को जोड़े हुए है । तो फिर Entertainment  शुरू किया जाए... 



10 comments:

Piyush Dewan said...

I agree with all that you have said. Khoob Khoob likha hai aapne :) I could especially relate to the plight of the young boy who asked to recite a poem/sing a song/ do a jig/ etc. in front of a known/unknown audience by his proud parents (or wanting to be proud parents)- Like you said, it happens with all the kids.

Nitin Dhawal said...
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Nitin Dhawal said...
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Nitin Dhawal said...

वाह, बहुत खूब लिखा है तुमने, हर लफ्ज़ अपनी खुद्दारी का गवाह है. मानना पड़ेगा आपकी सोच को, मनिरंजन के इस पहलु पे मेने कभी नहीं सोचा.
और अंग्रेजी में जो Title आपने दिया है वोह क्या ढूंढ के लाया हो,वाह कसम Babylon की बैंड बज गया समझने में.
Feeling nostalgic about childhood and sad about my current scope of entertainment

veeral said...

lyk ive alwaz told u,u r 1 f d very few whose lines i read....tis is d 1st hindi article ive read...:P..n it was wrth d tym...:):)...lovely thought about the wedding video and y parents keep replaying it...hahaha

rachita behl said...

reading hindi after a long long time so took me like real long! nevertheless interesting thoughts :) and a pleasure to read as always :)

Poonam said...

Bahut hi manoranjak lekh...sochne par majboor karne wala bhi :)

Mrugank Hathi said...

This is fantastic piece of writing Krishnakant. Seriously good!!!

Karan said...

Ahem...first of all for a blogpost in Hindi it's a fabulous writeup! I mean I am used to your fabulous english but this was a welcome change. About the content enough things are done in everyday life to get entertainment but most times someone or the other is thrust with the task of entertaining. Just an addition..How entertaining are you in a party or among a group also determines the way you are perceived by the group!
Keep writing iceman!!

Durgesh Sharma said...

Bahut khoob...kaha corn flakes bachne ke chakker me padte ho birader...bhai tum to bahut upper ja sakte ho