एक विशेष सूचना: ये लेख चाय और कॉफी के बीच की परिचर्चा नही है. अगर आप चाहे, तो बेझिझक ख्वाबों को चाय का न्यौता दे सकते है.
एक और ज़रूरी विशेष सूचना: ये लेख एकदम काल्पनिक है और यहाँ 'मैं' का इस्तेमाल केवल लेखक की सहूलियत के लिए किया गया है। कृपया लेखक की मानसिक स्थिति और जीवन पे assumptions न बनाये!!
छुट्टी की सुबह अपनी करवट बदल ही रही थी कि एक छोटी सी भूल ने पूरे दिन का नक्शा ही बदल दिया. वो भूल Tughlaq के तांबे के सिक्कों जितनी बड़ी तो नही पर उससे कुछ कम भी नही थी. वोह भूल थी अलार्म क्लॉक को पिछली रात ऑफ करना भूल जाना. इसलिए सोने के पहले सुबह आराम से उठने की मीठी चाशनी पर नींबू का आचार गिरते देखना पड़ा.
अब जब नींद खुल ही गयी और दिन के सफ़र पे निकलना तय हो ही गया, तो सोचा कि कुछ नया किया जाए, भले ही ज़्यादा कुछ तूफ़ानी ना हो. फोन उठाया, नंबर घुमाया, एंगेज टोने आया, सर चक्राया, ख़यालों की लड़ी ने सताया, जल्द ही नया प्लान बनाया और आँख बंद कर, न्यौता तैयार कर, ख्वाब को कॉफी पे बुलाया.
पिछली मुलाक़ात को तो कुछ अरसा हो गया है पर खुद पर इतना भरोसा था कि ख्वाब बिल्कुल दुरुस्त हालत में, well toned बॉडी के साथ आएगा. ये आत्मविश्वास ही तो है जो मानता है की मैने अपने ख्वाब का पूरा ख़याल रखा है. जिस दिन से उसे देखा था बस उसका ही ख़याल बैठा रखा है. खैर, ख्वाब ने मेरा न्यौता स्वीकारा और कार्यक्रम निश्चित हुआ.
कॉफी के साथ परोसने के लिए थाली में समय और निश्चय सज़ा दिए. मुझे अच्छी तरह याद है कि पिछली मुलाकात में इनका खूब स्वाद उठाया था उसने और इस बार भी इन्ही की दरकार होगी. वैसे तब situation थोड़ी अलग थी, क्यूंकि ख्वाब अपने कुछ हमनाम दोस्तों के साथ आया था. बात तब थोड़ी बिगड़ गयी थी जब उनमे आपस में इस बात में बहस छिड़ गयी की असली ख्वाब वही है. एक ने तो ना जाने गाल पे किसी मार्क की भी बात की थी . पर ये सुबह एक नयी सुबह है, कॉफी का ब्रांड भी बदला है और चीनी मिट्टी की प्लेट भी.
इसे सच्ची दोस्ती कहिए या सिर्फ़ एक इत्तेफ़ाक़, पर जैसे ही मैं तैयार था, ख्वाब साकार सामने सच खड़ा था. हम गले मिले, हाल चाल पूछे पर ये देखकर बुरा लगा की वह काफ़ी out of shape था और आवाज़ भी काफ़ी कमज़ोर थी. हमारी अगले कुछ देर की बात कुछ इस तरह थी:
ख्वाब: चाय पीने क्यू नही बुलाया? 'ख्वाब को जब चाय पे बुलाया' ज़्यादा बेहतर title लगता है.
मैं: तुमने फिर ‘एक विशेष सूचना’ को ignore मार दिया ना? सिर्फ़ title पढ़ना छोड़ दो अब तो.
ख्वाब: वैसे आज मेरी याद कैसे आ गयी? तुम्हारी नींद और तुम्हारे काम से जब से मेरा झगड़ा हुआ था, मैने सोचा की तुम्हारी हमारी कहानी तो ख़त्म.
मैं: सोचा तो कई बार की तुम्हे बुलाऊं पर.....
ख्वाब: पर समय नही मिला? चिंता मत करो, तुम अकेले नही हो. तुम्हारे जैसे करोड़ों है जो अपने ख्वाबों को सिर्फ़ छुट्टी के दिन याद करते है पर कम्भ्क्त उस दिन भी नींद या movie का प्रोग्राम बन आता है.
( इस बात ने कुछ एहसास कराया. हर दिन ना जाने कुछ लोग तो ऐसे मिल ही जाते है, जिनके लिए मुह फट होके बदतमीज़ी से बात करना बिल्कुल आम बात है, पर सच को सहजता से बोल पाने कहा मिलते है, ख्वाब आख़िरकार शायद इसीलिए सबसे बेहतर दोस्त होते है.)
मैं: याद इसीलिए आई क्यूंकि मिले हुए काफ़ी दिन हो गये थे और ये कहानी इतनी जल्दी ख़त्म नही होने वाली है.
ख्वाब: देखो ना तो मैं तुम्हारा soul हूँ ना ही alter ego. मैं बस तुम्हारे दिमाग़ की वो rare सोच हूँ जिसे तुम्हारे दिल की भी हामी मिली है. मुझे नही पता की मैं तुम्हारे क्या काम आ सकता हूँ.
मैं: मन तो बावरा है, चाहता ही है सयानी भीड़ में तुम्हारा सयाना हाथ हो.
ख्वाब: फिल्मी कलियाँ खिलाना बंद नही करेगा !!
मैं: मैने खूब सोचा इस बारे में कि आख़िर गड़बड़ हुई कहा पे? मैं तो एक ऐसा शक़स हूँ जो अपने बारे में बिल्कुल निश्चित है, जानता है की उसे ज़िंदगी से क्या चाहिए. सबसे लड़के, सब कुछ हासिल करने का मानस और ढाड्स दोनो है. फिर हम दोनो इस journey में अंजान मुसाफिर कैसे बन गए ?
ख्वाब: पहले जो वादा किया है वो निभाओ. बातों की पहेलियाँ बाद में बुझायेँगे, पहले कॉफी पिलाओ.
मैं: फिल्मी !!!
[ बातों का सिलसिला थमा और शुरू हुआ कॉफी का aroma )
ख्वाब ( कॉफी का sip लेते हुए) : तुम्हे वो लास्ट टाइम का झगड़ा जो मेरे और मेरे दोस्तों के बीच में हुआ था, याद है?
मैं: हाँ
ख्वाब: वो झगड़ा हुमारे बीच का नही था, वो तुम्हारा तुमसे झगड़ा था. हम सब तो बस तुम्हारे बताए हुए रास्ते पे चलते है. तुम्हारी और मेरी equation खराब हुई क्यूंकि तुम बाकी चीज़ों में व्यस्त हो गये. काम, नये दोस्त, एक सेट रुटीन में ज़िंदगी जीना, खुद के लिए समय ना निकलना. अगर तुम अपने लिए ही समय नही निकलोगे, तो मेरा नंबर कैसे आएगा?
मैं: पर हर वीकेंड मैं वही तो करता हूँ जो मुझे पसंद है??
ख्वाब: हर वीकेंड तुम वो करते हो सबको खुश रखे, वो तुम्हारी कई पसंदों में सिर्फ़ एक चीज़ है- सबको खुश रखना. उस बीच में अपनी गाड़ी अलग ही highway पकड़ चुकी है.
मैं: छोड़ो ये सब बातें. आजकल तुम कर क्या रहे हो?
ख्वाब: फिलहाल तो बेरोज़गार हूँ. मैं हिन्दी सोप ओपेरा या फिर वो सरकारी स्कीम की तरह हूँ जिसकी शुरुआत तो काफ़ी धुआँधार होती है, पर बीच में बनाने वाले भी purpose भूल जाते है और ऑडियेन्स भी. यहा पे दोनो तुम ही हो.
मैं : तो फिर गुज़ारा चलता कैसे है?
ख्वाब: गुज़ारा बस तुम्हारी गुजारिश के इंतेज़ार में हो ही जाता है.
मैं: तुम तो एक सोच हो ना. एक दिमाग़ से दूसरे दिमाग़ तक का सफ़र तय करना क्या मुश्किल होगा?
ख्वाब: ये गजब बात की तुमने. अगर सोच को एक दिमाग़ से दूसरे तक इतनी आसानी से पहुँचाया जा सकता, तो दुनिया भर में इतना हंगामा कहाँ होता. लोगों की सोच एक दिशा में जा सकती है, पर एक नही हो सकती. ख्वाबों का सिलसिला तो और अलग है. हर दिमाग़ अपने ख्वाबों को लेकर बहुत possessive होता है. इसलिए क्यूंकि मैं तुम्हारे दिमाग़ की उपज हूँ, अंत भी मेरा तुम्हारे दिमाग़ में ही होगा.
मैं: Scary thought. मैने वैसे कोशिश तो की ही की तुम अकेले ना रहो. मेरी hobbies से तुम्हारी दोस्ती करवाई भी थी. उसका क्या हुआ?
ख्वाब: You do act naive at times . हॉबी की दोस्ती habit से करवानी थी ताकि वो साथ में रहकर तुम्हे खुश रख सके. हॉबीस को ज़बरदस्ती ख्वाबों पे थोपना बिल्कुल समझदारी नही है. ना तुम्हारे पास इतना समय है ना इतनी clarity की इन दोनो का संगम हो सके.
मैं: यार तुम तो मेरी बजाने का ही मानस बनके आए हो. इतने दिन की खुन्नस निकल रही है क्या?
ख्वाब: प्राब्लम समय की है. दो मिनट तक मेरे चेहरे की तरफ ध्यान से देखो.
( मैं एकटक दो मिनट तक ख्वाब को घूरता रहा. जो दिखा वो काफ़ी disturbing सीन था. ख्वाब अपना चेहरा बदलता जा रहा था. उसके इतने सारे चेहरे देखकर मैं समझ नही पाया की उसकी मदद कैसे करू)
मैं: ये तुम्हारे साथ क्यू हो रहा है, मैं तुम्हारी मदद करू??
ख्वाब: ये मेरे साथ नही, तुम्हारे साथ हो रहा है. फिलहाल मदद की ज़रूरत तुम्हे है.
ये कहते ही ख्वाब गायब हो गया. मैंने अपने आप को अपने bed पे ही पाया .
मैं उठा, नींद की चादर समेटी और दिनचर्या के चक्रव्यूह में घुस गया. ये irony ही है कि मैं सच की तलाश अपने ख्वाब में कर रहा था. जल्द फिर मुलाकात होगी.
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